क़वारन्टीन में बैठ कर मंत्री सतपाल महाराज को बनानी चाहिए पर्यटन के लिए स्ट्रैटजी

उत्तराखंड प्रदेश की रीढ़ पर्यटन रहा है।साहसिक खेल आयोजकों के साथ ही राज्य को हो रहा करोड़ों का नुकसान,हर साल पर्यटन ही तो वो जरिया है जिस पर राज्य को आबकारी और खनन के बाद सबसे ज्यादा राजस्व की प्राप्ति होती है। लेकिन कोरोना काल ने तो पर्यटन की कमर ही तोड़ दी है। राज्य में पर्यटन की इस बार कल्पना करना कोसो दूर है। लेकिन उन पर्यटन उद्यमियों का क्या जो इस भरोसे पर अपना व्यवसाय चला रहे थे कि उनका भविष्य सुनहरा होगा? हालांकि केवल पर्यटन उद्यमियों का जिक्र करना सही नहीं है। लेकिन प्रदेश की रीढ़ भी तो इनसे ही है। क्योंकि करोड़ों रुपये का मुनाफा इससे ही तो राज्य को होता है। बहरहाल अभी बात यह है कि सैकड़ों की संख्या में पर्यटन उद्यमी मायूस बैठे हैं। उनको चिंता इस बात की है कि उनका भाविष्य आखिर होगा क्या?
बता दूं कि 2020 के सारे साहसिक खेल, महोत्सव, प्रतियोगिताएं व अन्य सभी पर्यटन को फिलहाल कोरोना के कारण बंद करना पड़ा है। यानी कि इस साल पर्यटन उद्योंगों की उम्मीद करना मुमकिन नहीं। लेकिन ऐसे हाथ पर हाथ धर के तो नहीं बैठा जा सकता? और आखिर कब तक? चिकित्सक वैज्ञानिकों की माने तो किसी भी महामारी का वैक्सीन बनाने में 18 माह तक का समय लगता है, और अभी देश और प्रदेश में कोरोना की दस्तक को महज 4 ही माह हो पाया है। ऐसे में कब तक इस ओर आंखें मूंद के बैठे जा सकता है।
माई एडवेंचर क्लब की उद्यमी और यंगेस्ट पैराग्लाइडिंग लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड की ख्याति प्राप्त उड़नपरी शिवानी गुसाईं भी कहती हैं कि इस ओर भले ही अभी नहीं लेकिन आने वाले अक्टूबर और नवंबर माह के साहसिक खेलों के बारे में तो सोचा जा सकता है। डिस्ट्रिक्ट कोर्स आदि खोले जा सकते हैं। सरकार अब धार्मिक स्थलों और पर्यटक स्थलों को तो 8 जून से खोलने ही जा रही है। लेकिन साथ ही इस ओर भी कदम बढ़ाना चाहिए। वो बताती हैं कि पर्यटन के पीक सीजन में इस बार राज्य के राजस्व के साथ ही उन छोटे छोटे उद्यमियों, टूर एंड ट्रैवल, ट्रैकर्स , राफ्टिंग व्यवसाइयों को करोड़ों का नुकसान हुआ है। लेकिन आने वाले सीजन के लिए कोई तो कदम उठाना ही पड़ेगा।
भले ही अभी नहीं लेकिन पर्यटन की तरफ सोचना तो होगा ही। तो क्यों न मंत्री जी क़वारन्टीन में बैठ कर इस ओर ही ध्यान दें लें ? क्यों न अपने एकांत समय के मौके पर पर्यटन पर अपनी स्ट्रैटजी बना लें ?
रिपोर्ट- पूर्णिमा मिश्रा देहरादून